Monday, August 16, 2010

धर्म चूल्हे पर स्वार्थ की हांडी

कालांतर में एक अजामिल नाम का डाकूथा जिसने अपने पुत्र का नाम नारायण रखा। अंत समय में उसने अपने पुत्र को आवाज लगाई। सोचा बता दूं लड़के को कहां किससे कितनी उगाही करनी है, चोरी और लूट का धन कहां छिपा रखा है। लेकिन कमला हो गया अंतिम समय में नारायण-नारायण सुनकर स्वयं नारायण चले आये और डाकू का जीवन धन्य हो गया। ऐसा हुआ या नहीं यह तो पता नहीं लेकिन यह कहानी कदाचित उन लोगों ने गढ़ी है जो अपने कुकर्मों को इस कहानी की आड़ यह तर्क दिया जा सके कि जब हत्या, चोरी, डकैती जैसे पाप करने के बाद एक डाकू को अंत समय में भगवान मिल सकते हैं तो फिर हम तो थोड़ी सी रिश्वत लेते हैं उसके ऐबज में सामने वाले का काम करते हैं, धर्म के नाम पर थोड़ा सा बेवकूफ बनाते हैं, पेट पालने के लिए। इसमें कौन सा बढ़ा पाप करते हैं।यही इंसान की विशेषता है, और इसी तरह से वह कुछ भी करके समाज में सम्मानित स्थान पर बैठा रहता है। बस जरूरत होती है उसे एक ऐसे मंच की जहां खड़े होकर वह अपने आपको धर्म और संस्कृति का ठेकेदार घोषित कर सके, जहां उसके हाथ छोटी-बड़ी कैसी भी हो ताकत हो। यह प्रवृत्ति किसी एक धर्म के ठेकेदार में नहीं बल्कि तमाम धार्मिक ठेकदारों में पल रही है।अभी चंद रोज पहले भारतीय संस्कृति के स्वयंभू ठेकेदारों ने फ्रेंडशिप डे पर कुछ लड़के-लड़कियों को अनावश्यक परेशान किया और वह पाप भी किया जो छिछोरों का आभूषण है। करीब-करीब इसी समय फतवों की फैक्ट्री से एक फतवा जारी हुआ कि महिलाएं पेशेवर होने से बचें, उन्हें नौकरी नहीं करनी चाहिए, मंगेतर से बात नहीं करने, इससे पहले बीमा नहीं करवाने, फोटो नहीं खिंचवाना चाहिए जैसे वाहियाद फतवे जारी किए गए। लेकिन मुसीबत यह है कि धर्म के आधार पर कही गई इन बातों का विरोध करने वाला कोई नहीं है। सत्ता चौराहे पर तमाशबीन की तरह खड़े हो कर तमाशा देखती है और चार मुर्दे चौपाल पर बैठकर लोगों को जिंदगी का अर्थ समझाने लगते हैं। धर्म की आग में स्वार्थ की हांडी चढ़ाकर इंसान की भावानाओं पकाने और खाने तकके पतन में जा पहुंचे लोगों की दुकानदारी चह रही है।हिन्दू हो या मुसलमान या फिर कोई अन्य अपनी और अपनी संतति, संपत्ति की सुरक्षा का उसको प्राकृतिक अधिकार उसके जन्म के साथ ही मिला हुआ है। अपने भविष्य के प्रति सावधान होना, हंसना-बोलना उसके जन्मजात अधिकार हैं। कोई यह नहीं सकता किउसे यह अधिकार हिन्दुस्तान में है और अन्य जगह नहीं है। वयं रक्षाम हर काल में हर स्थान पर लागू है। वो नपुंसक और कायर होते हैं जो अपनी रक्षा करने के लिए दूसरों को आवाज देते हैं और वे मनहूस होते हैं जो हंसने-बोलने से परहेज करते हैं। हिन्दुस्तान की हर कौम ने इसे अपनाया है। लेकिन कुछ धर्म के ठेकेदारों ने अपनी दुकान चमकाने के लिए ऐसे अनाप-शनाप पाखंड फैला रखे हैं जिसमें आदमी की आस्था तकजला कर भस्म कर देते हैं। हिन्दुओं में हों या मुसलमानों में यह ऐसे घातक जीव हैं जो अपने स्वार्थ के लिए न केवल राष्टï्र की प्रगति में बाधकबनते हैं बल्कि एक-एक घर में परस्पर आग लगाने की सीख देते हैं। धर्म व्यक्तिगत होता है, कोई धर्म किसी पर थोपा नहीं जा सकता, इसलिए आधुनिक युग में इन महानुभावों को चलता कर दिया जाये यही बेहतर होगा, कहीं ऐसा न हो कभी कोई रोटी खाना भी जायज और नाजायज की श्रेणी में ला दे।

1 comment:

  1. कोई भी धर्म गलत नहीं होता धर्म जब स्वार्थ के निचे आ जाता है तब उसके मायने उलटे हो जाते हैं ,हर धर्म का एक ही आधार है परोपकार ही पुण्य है और किसी को दुःख पहुँचाना ही पाप है ,ऐसे में देखा जाय तो आज एक कड़ोर में एक पुण्यात्मा है और उसकी भी स्वार्थवश कोई कद्र नहीं करता चारों तरफ पापियों का बोलबाला है | आज शरद पवार जैसे पापियों का बोलबाला है इंसानियत को ऐसे पापी हरवक्त जलील और शर्मसार करते हैं ...

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