Friday, August 20, 2010
12 साल सोनिया के या...
सोनिया गांधी के पुन: कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने की कवायद शुरू हो चुकी है और वे ही अध्यक्ष होंगी इसमें किसी को लेश मात्र संदेह नहीं है। इतने लंबे समय तक कांग्रेस पर लगाम कसने वाली वे पहली कांग्रेस नेता हैं।लंबे नानुकुर के बाद 1998 में श्रीमती सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान संभाली थी। उस समय कांग्रेस की हालत ऐतिहासिक रूप से बद्तर थी। स्व. नरसिंह राव घोटालों में फंसे थे। वरिष्ठï कांग्रेसी इधर-उधर बिना राजा की फौज की तरह भाग रहे थे। आजीवन कांग्रेस को दान करने वाले सीताराम केसरी यद्यपि अध्यक्ष पद संभाल रहे थे लेकिन वे कहीं से अध्यक्ष का दायित्व नहीं निभा पा रहे थे। कुछ कांग्रेसी थे जो पार्टी के बिखराव की इस नस को जानते थे और आखिरकार केसरी जी को बिदा करके उन्होंने सोनिया गांधी को कांग्रेस की कमान सौंप दी। केसरी जी को जिस प्रकार जल्दबाजी में अध्यक्ष पद से हटाया गया इसकी तीखी आलोचना हुई थी, उनके स्वर्गवास को लोगों ने पद से हटाने का सदमा तक करार दिया। बहरहाल सोनिया गांधी ने न केवल कांगे्रस की कमान संभाली बल्कि पार्टी को एकजुट किया, लगातार दो पराजयों का दंस झेलने वाली राष्टï्रीय पार्टी को लगातार दो चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी के रूप उभारा और सत्ता पर काबिज कराया। आज उनकी पार्टी और सत्ता पर ऐसी पकड़ है कि उनकी मर्जी के बिना सत्ता और संगठन पत्ता भी नहीं हिलता।सोनिया गांधी की कई मामलों में आलोचना की जा सकती है, लोग करते भी हैं। लेकिन उन्होंने भारतीय राजनीति में जो मिशाल कायम की वह सुनियोजित ही सही, कोई ओर नेता नहीं कर सका। कहा जाता है कि उन्होंने पूरी सोची समझी रणनीति के तहत प्रधानमंत्री का पद त्याग दिया, लाभ के पद के आरोपों के चलते इस्तीफा दिया, विदेशी मूल के मुद्दे पर पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया। सोनिया के राजनीतिक विरोधी कहते हैं कि उन्होंने ऐसा केवल सत्ता लोभ के कारण किया। हालांकि यह सर्वविदित है कि 1980 में संजय गांधी की मौत के इंदिरा गांधी अपने बड़े पुत्र राजीव गांधी को राजनीति में लाना चाहती थीं, तब सोनिया ने इसका विरोध किया था। वह अपने पति की मृत्यु के एकदम बाद राजनीति में नहीं आईं। पहले उन्होंने अपने बच्चों की जिम्मेदारी का निर्वाह किया और फिर राजनीति में आईं। ऐसा करने में उन्हें सात साल लग गए। देश की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी पार्टी सात साल में एक सर्वमान्य नेता पैदा नहीं कर सकी तो इसमें गलती किसकी है? हमारे देश के ही अनेकों नेता देशवासी होने जैसा स्वांग भी नहीं रच सके, जबकि सोनिया गांधी ने आडंवर ही सही भारतीय संस्कृति की छाप, जितनी उन्हें बताई गई या उन्होंने देखी हर जगह छोड़ी। यहां तक कि विदेशी मूल का धुर विरोधी भारतीय राष्टï्रीय स्वयं सेवक संघ को भी समय-समय पर सोनिया की तारीफ करने को विवश होना पड़ा।शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने पार्टी इसीलिए छोड़ी थी क्योंकि उन्हें विदेशी मूल का नेतृत्व स्वीकार नहीं था। आज वही पवार साहब ऐसी सरकार में मंत्री हैं जो सोनिया जी के इशारे से चलती है। प्रमुख विपक्षी दल ने कई तरह से सोनिया गांधी को घेरने की कोशिश की, कहीं-कहीं सफल होते दिखे, लेकिन अंतत: उन्हें मुंह की ही खानी पड़ी। कांग्रेस की अमरवेल बिना नेहरू-गांधी परिवार से लिपटे फलफूल नहीं सकती यह भी साबित हो गया। आज वह लगातार 12 साल तक कांग्रेस अध्यक्ष रहने वाली नेहरू-गांधी परिवार की अकेली सदस्य हैं। उनसे पहले हालांकि मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी अलग-अलग समय पर कांग्रेस का नेतृत्व संभाल चुके हैं, लेकिन इतने लंबे समय तक कोई नहीं रहा। इन 12 वर्षों में कांग्रेस को सत्ता के द्वार तक पहुंचाकर वह उसकी खोई हुई गरिमा को वापस लाईं और एक बार फिर से वंशवाद की स्थापना हुई। कल तक सोनिया गांधी को पार्टी में लाने के लिए उतावले नेता आज राहुल को अपना मुखिया चुनने के लिए बेताब हैं।
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विवेकानंद जी, सीधे कहिये की कांग्रेस में आप आजीवन दरिया बिछा सकते है, माईक लगा सकते हैं पर अध्यक्ष नहीं बन सकते...................................
ReplyDeleteहमारी सबसे पुराणी "लोकतान्त्रिक पार्टी है" जहाँ फैसला बहुमत से होता है.
"आजीवन कांग्रेस को दान करने वाले सीताराम केसरी यद्यपि अध्यक्ष पद संभाल रहे थे लेकिन वे कहीं से अध्यक्ष का दायित्व नहीं निभा पा रहे थे"
ये आपके शब्द हैं.