Monday, August 9, 2010
आयोग या सफेद हाथी
मध्यप्रदेश में वर्ष 2003 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद विभिन्न घटनाओं को लेकर गठित किए गए सात न्यायिक जांच आयोग में से तीन आयोग अनेक बार कार्यकाल बढ़ाए जाने के बावजूद अपनी रिपोर्ट शासन को नहीं सौंप पाए हैं, जबकि इन तीन आयोगों पर सरकार का 1 करोड़ 40 लाख रुपए से अधिक धन व्यय हो चुका है। हालांकि सरकारी खर्चे के हिसाब से यह राशि बहुत बड़ी नहीं है लेकिन जहां लाखों लोगों को दो जून की रोटी ठीक से नसीब न हो रही हो वहीं बिना किसी काम के चंद निठल्ले लोग सिर्फ जांच के नाम पर कागज काले करते रहें और सरकारी पैसा हजम करते रहें, वहां यह राशि बहुत बड़ी हो जाती है।जिन आयोगों ने शासन को अपनी रिपोर्ट नहीं सौंपी है उनमें 22 सितंबर 07 को रीवा स्थित जेपी सीमेंट फैक्ट्री परिसर में गोली चालन की घटना की जांच करने वाला आयोग, सामाजिक सुरक्षा पेंशन तथा राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना में अनियमितताओं के लिए गठित जांच आयोग और सरदार सरोवर परियोजना में फर्जी विक्रय पत्र तथा पुनर्वास स्थल अनियमितता संबंधी जांच आयोग शामिल है। तीन आयोगों में से जेपी सीमेंट की घटना की जांच के लिए आयोग का गठन 31 अक्टूबर 07, सामाजिक सुरक्षा पेंशन के लिए जांच आयोग आठ फरवरी 08 तथा सरदार सरोवर परियोजना के लिए आयोग का गठन आठ अक्टूबर 2008 को किया गया था। सर्वाधिक 98.88 लाख की राशि सरदार सरोवर परियोजना के लिए गठित जांच आयोग पर, जबकि 41.90 लाख रुपए की राशि सामाजिक सुरक्षा पेंशन के जांच आयोग और 3.17 लाख रुपए जेपी सीमेंट फैक्ट्री गोली कांड पर व्यय हो चुकी है।31 अक्टूबर 07 को जेपी सीमेंट गोली कांड मामले की जांच के लिए गठित आयोग का कार्यकाल चार बार, सामाजिक सुरक्षा पेंशन आयोग का कार्यकाल चार बार और सरदार सरोवर परियोजना में फर्जी विक्रय पत्र मामले की जांच के लिए गठित आयोग का कार्यकाल दो बार बढ़ाया जा चुका है। इसके पहले राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2004 के बाद 31 जनवरी 2004 को श्योपुर में डकैत मुठभेड़ में सहायक पुलिस निरीक्षक दिवारीलाल रावत की संदेहास्पद मृत्यु के मामले की जांच के लिए 31 मई 04 को गठित आयोग ने 25 जनवरी 2006 को अपनी जांच पूर्ण कर शासन को सौंप दी थी। इस आयोग के कार्यकाल में चार बार वृद्धि की गई और इस पर लगभग 12.50 लाख रुपए व्यय हुए।14 जुलाई 04 को उपायुक्त वाणिज्यकर आरके जैन की विशेष पुलिस स्थापना की अभिरक्षा में संदेहजनक मौत के मामले के लिए छह अगस्त को गठित जांच आयोग ने 30 अप्रेल 2009 को अपना प्रतिवेदन शासन को सौंपा और इसके कार्यकाल में दस बार वृद्धि की गई जबकि इस पर लगभग 4.40 लाख रुपए व्यय हुए।मुरैना जिले के पोरसा में चार सितंबर 09 को एक व्यक्ति की हिंसक घटनाओं में मृत्यु के बाद भीड़ पर पुलिस द्वारा किए गए बल प्रयोग मामले की जांच के लिए सात अक्टूबर गठित जांच आयोग ने 29 मई 2005 को अपनी जांच रिपोर्ट शासन को सौंपी। इस आयोग पर शासन के मात्र 52 हजार रुपए व्यय हुए जबकि इसके कार्यकाल में आठ बार वृद्धि की गई। उन्होंने बताया कि इसी प्रकार दतिया जिले में एक अक्टूबर 2006 को दुर्गा नवमी पर्व के दौरान सिंध नदी में तीर्थ यात्रियों के डूबने और लापता हो जाने के संबंध में 13 अक्टूबर को गठित जांच आयोग ही एक मात्र ऐसा आयोग रहा जिसके कार्यकाल में वृद्धि नहीं की गई और और इस आयोग ने 21 मार्च को अपना प्रतिवेदन शासन को सौंपा जबकि इस आयोग पर शासन का 1.98 लाख रुपए खर्च हुए। फिलहाल तीन आयोग जांच कार्य पूर्ण नहीं होने के कारण अपनी रिपोर्ट नहीं दे पाए हैं और अब देखना यह है कि यह अपनी रिपोर्ट कब तक शासन को सौंप पाएंगे। या फिर जांच के नाम पर सफेद हाथी बनकर माल हजम करते रहेंगे।
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