
हो उदय नव सूर्य नभ पर
द्वोष के तम का हरण हो
हे सखे नव वर्ष में
कुछ इस तरह से आचारण हो
भावनाएं नेह की हों
धर्म की न देह की हों
आदमियत जिससे हो आहत
वर्जना उस चाह की हो
प्रेम हो सबमें परस्पर
प्रेममय वातावरण हो
हे सखे नव वर्ष में.........
शिखर पर पहुंचो प्रगति के
बन के पर्याय उन्नति के
तोड़कर सब व्यथ बंधन
पुष्प बन जाओ प्रकृति
संत की भांति सखा तुम
सज्जनों में स्मरण हो
हे सखे नव वर्ष में
कुछ इस तरह से आचरण हो
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