Friday, December 31, 2010

बाहर से दरवाजा बाहर से ही बंद होता है

इसमें समझने और जांच जैसी कोई बात कम से कम मुझे तो समझ नहीं आती। जिस दिन आरुषि की हत्या हुई नूपुर तलवार (आरुषि की मां) ने नौकरानी की आवाज पर दरवाजा खोला, यानि दरवाजा अंदर से बंद था। हेमराज की लाश दूसरे दिन छत पर मिली, छत पर जाने वाले सीढिय़ों पर लगे दरवाजे में अंदर से ताला बंद था। यनि दोनों दरवाजे अंदर से बंद थे। यदि कोई व्यक्ति आरुषि की हत्या करने के बाद छत पर हेमराज की हत्या करता तो छत पर जाने वाला दरवाजा छत से बंद होता न कि अंदर से। और यदि कोई छत का दरवाजा अंदर से बंद करके मुख्य दरवाजे से बाहर निकला होता तो दरवाज बाहर से बंद होता न कि अंदर से। तलवार परिवार के घर की न तो कोई खिड़की टूटी न दीवार फिर भी कातिल फरार...असंभव। यानि कातिल घर में था और घर में है।

सीबीआई कह रही है कि मोबाइल और हत्या में इस्तेमला किया गया हथियार नेपाल में हो सकता है, पर जिस कैमरे की हत्या के समय चर्चा की जा रही थी वह सिरे से गायब है। इस बात को भी नजर अंदाज किया जा रहा है कि छत पर जाने वाली सीढ़ी के दरवाजे में लगे ताले की चाबी तुरंत हाजिर क्यों नहीं हुई, जबकि छत का इस्तेमाल रोज हो रहा है।

और सबसे अहम बात कि जांच अधिकार बार-बार क्यों बदले गए। सबसे पहले यदि इस बात की जांच हो जाए तो शायद कुछ निकल सकता है। क्योंकि सब इंस्पेक्टर पीआर नवनेरिया, सब इंस्पेक्टर संतराम, इंस्पेक्टर अनिल समानिया सब नाकारा तो नहीं हो सकते जो आखिर में जांच सब इंस्पेक्टर जगदीश सिंह को सौंपी गई। बार-बार जांच अधिकारी बदलने से जांच ही प्रभावित नहीं हुई बल्कि सबूतों का साफ करने का भी पर्याप्त मौका मिला। इसके पीछे कौन था, किसके कहने पर अधिकारी बदले गए, इनको बदलने से किसको लाभ था...यदि इसका खुलासा हो जाए तो शायद आरुषि के कातिल तक पहुंचने का सुराग भी मिल सकता है।

No comments:

Post a Comment