भ्रष्टाचार के आंकड़ों पर गौर करें तो कहना लाजमी होगा कि हमारी व्यवस्था लोकतांत्रिक नहीं बल्कि चोर तांत्रिक है। हो सकता है कुछ लोगों को यह बात अच्छी न लगे मैं उनसे क्षमा चाहता हूं लेकिन मेरा आज का अनुभव और आज ही उपलब्ध आंकड़े मेरे आंकलन की पुष्टि करते नजर आ रहे हैं।
मुझे आज एक सज्जन मिले, उन्होंने अपने बच्चे की पोस्ट ऑफिस में नौकरी लगने की खुश खबरी सुनाई साथ में बच्चे की ज्वाइनिंग रिपोर्ट में जमा करने के लिए लगने वाले जाति प्रमाण पत्र पर उनको हुई परेशानी की व्यथा-कथा। तीन दिन तक वे केंद्र द्वारा दिए गए प्रोफार्मा पर एसडीएम के दस्तखत लेने के लिए चक्कर लगाते रहे, चौथे दिन एक वकील साहब की मदद से उनका काम हुआ। वकील साहब ने उन्हें 50 रुपए बाबू को देने को कहा। उनके पास 100 का नोट था, जो उन्होंने वकील साहब को दिया, वकील साहब कुछ ज्यादा ही करीबी व्यक्ति थे लिहाजा उन्होंने 100 रुपए वापस कर दिए और अपनी जेब से 50 रुपए संबंधित बाबू को दे दिए। इसके बाद उन्होंने कहा कि यार 100 रुपए तो चार लोग मिलकर सामौचे-कचौरी में खर्च कर देते हैं फिर यह तो मेरे लिए बड़ा काम था, इसलिए देने में कोई हर्ज नहीं।
एक नौजवान के भविष्य को नजरअंदाज करने वाला अधिकारी किस हद तक कमीना है यह उसने बता दिया, इस स्थिति में कोई भी पिता मजबूर हो जाएगा। लेकिन समौसे-कचौरी के रूप में उनकी जो स्वीकारोक्ति कचोटने वाली थी। बहरहाल गरीब और आम आदमी इसतरह से मजबूर होकर सालाना करीब 900 करोड़ रुपए रिश्वत में खर्च कर देता है। जबकि उक्त अफसर की तरह कई भ्रष्ट नेताओं, अफसरों और घपलेबाज व्यापारियों के 462 अरब विदेशी बैंकों में जमा हैं। पिछले तीन साल में केवल 2105 भ्रष्टाचारियों को पकड़ा गया है, सजा कितनों को हुई सरकार के पास इसके कोई आंकड़े नहीं है। फिर यह आंकड़े वे हैं जो पकड़े गए हैं। लोकसभा में दी गई जानकारी के मुताबिक 2008 में भ्रष्टाचार के 744, 2009 में 795 मामले तथा 31 अक्टूबर 2010 तक 566 मामले दर्ज किए गए। जिसमें इन छोटे अफसर जैसे अनेकों मामले निश्चित रूप से शामिल नहीं हैं।
जानकारों की राय है कि देश में भ्रष्टाचार को जड़ से तभी उखाड़ा जा सकता है जब ऐसा करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति हो। जब नेता और दल ही भ्रष्ट हों तो आप व्यवस्था के अचानक भ्रष्टाचार मुक्त हो जाने की उम्मीद नहीं कर सकते। देश में भ्रष्टाचार ऊपरी स्तर से नीचे के स्तर की ओर फैलता है। शीर्ष नेतृत्व, चाहे वह राजनीतिक हो या प्रशासनिक, अगर भ्रष्टाचार करता है तो निचले स्तर पर भ्रष्टाचार होना स्वाभाविक है। उपलब्ध आंकड़ों और परिस्थतियां हमें यह सोचने पर विवश करती हैं कि हम लोकतंत्र में नहीं बल्कि चोर तंत्र में जी रहे हैं।
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