Sunday, December 12, 2010
कुछ तो चाहिए किचकिच के लिए
ऐसा लगता है राजनीति किचकिच की पूरक हो गई है, वक्त वे-वक्त कोई न कोई नेता ऐसा बेसिर-पैर का बयान दे देते हैं कि सियासत में तूफान उठ खड़ा होता है। 2जी स्पेक्ट्रम पर घमासान चल रहा है, सारा देश इस भारी-भरकम घोटाले में सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था का इंतजार कर रहा है, ऐसे वक्त में मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान कांगे्रस महासचिव दिग्विजय को न जाने क्या सूझी कि उन्होंने दो साल पहले की घटना एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे की शहादत पर बेसिर-पैर का जुबानी धमाका कर दिया। वे जो बोल रहे हैं वह कितना सच और झूठ है यह दीगर बात है, लेकिन दो साल बाद इसकी कोई जरूरत नहीं थी। अगर बहुत हरिश्चंद्र बनने का शौक था तो एआर अंतुले के साथ कंधा मिला लेते। ऐसा लगता है एक दिन बाद संसद सत्र स्थगित होने वाला है, इसलिए कोई न कोई किचकिच चलती रहे, इसके लिए दिग्गी राजा ने यह फिजूल बयान दिया। हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि इससे आतंकी हमले के गुनहगार आमिर कसाब को लाभ होगा, मुझे ऐसा नहीं लगता। क्योंकि कसाब देश के खिलाफ युद्ध छेडऩे का दोषी है, जिसमें करकरे साहब की मौत एक पार्ट है। लेकिन विपक्ष को भी कुछ न कुछ तो चाहिए चिल्लाने के लिए सो वह भी पिल पड़ी।दिग्विजय सिंह ने जितना फालतू बयान दिया है, विपक्ष का बखेड़ा भी उतना ही फिजूल है। आखिर क्या कहा दिग्विजय ने, करकरे जब मालेगांव हत्याकांड की जांच कर रहे थे उस दौरान उन्हें हिन्दूवादी संगठनों से धमकी मिल रही थी। दूसरी बात वे इस बात से परेशान थे कि भाजपा नेता उनकी निष्ठा पर सवाल उठा रहे हैं। करकरे को धमकी मिल रही थी यह तो महज दिग्गी सिगूफा लगता है लेकिन जरा गड़े मुर्दे उखाड़ें तो करकरे पर भाजपा का संदेह खूब चर्चा में रहा। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर की गिरफ्तारी पर भाजपा और शिवसेना ने करकरे को खूब कोसा था, यहां तक कहा गया था कि एटीएस प्रज्ञा ठाकुर को जेल में प्रताडि़त कर रही है। भाजपा तो वाकायदा आंदोलन चलाने के मूड में थी। फिर अब दिग्गी के बयान से भाजपा के पेट में दर्द क्यों हो रहा है। प्रज्ञा अब भी जेल में हैं और भाजपा उन्हें बचाने के लिए, निर्दोष साबित करने के लिए क्यों कोई प्रयास नहीं कर रही है।इसलिए लगता है कि किसी को देश से मतलब नहीं है, किसके नंबर कैसे बढ़ सकते हैं, वे कैसे चर्चा में रह सकते हैं इसी की जुगत में जुबान चलाते रहते हैं। दिग्विजय सिंह दो साल पहले भी कांग्रेस में थे और केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी, यदि करकरे को धमकी मिल रही थी तो स्वयं करकरे भी इसकी शिकायत कर सकते थे और दिग्विजय सिंह भी इस बात पर सवाल उठा सकते थे, दो साल बाद इन बातों की कोई तुक नहीं है। और भाजपा करकरे साहब के प्रति आज जितनी कृतज्ञ है, उतना ही भरोसा तब करना चाहिए था जब वे मालेगांव कांड की जांच कर रहे थे। कृपया होश में आएं और इलाहाबाद हाईकोर्ट की इन टिप्पणियों पर गौर फरमाएं। जनता बेवकूफ नहीं है, सिर्फ अवमानना के डर से चुप रहती है। और दूसरी जनता दौड़ा-दौड़ा कर मारेगी।
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