Sunday, July 18, 2010
कुत्ते की पूछ और पाकिस्तान
कुत्ते की पूछ और पाकिस्तान एक समान है, न पूंछ कभी सीधी होती है और न ही पाकिस्तान कभी अपनी ओछी हरकतों से बाज आता है। कुत्ते की पूछ की कुछ खासियतें होती हैं, मालिक के सामने होगा तो हिलाता रहेगा, ताकतवर के सामने होगा तो दिखेगी भी नहीं कि कहां घुस गई और जब अपने साथियों के साथ होगा तो पूछ एकदम तनी होती है। अमेरिका और चीन के सामने पाकिस्तान की पूछ हमेशा हिलती रहती है। इस अदा के कारण उसे रोटी का टुकड़ा भी मिल जाता है और कभी-कभी मालिक को फुसला भी लेता है। मसलन यदि अमेरिका ने कहा कि अब यहां हमले हुए तो पाकिस्तान भुगतेगा, पाक ने कहा जी हुजूर, उसने कहा फलां आदमी हमारे यहां अपराध करके गया है, पाक ने पकड़कर दे दिया, लेकिन जब अमेरिका कहता है लादेन पाकिस्तान में है तो कह देता है हुजूर मैं तो आपका गुलाम हूं कसम खाता हूं लादेन यहां नहीं है। चीन के सामने भी उसके यही हाल हैं। चीन और अमेरिका दोनों को पूछ हिला-हिला कर बेवकूफ बना रहा है। अमेरिका से पैसा ले रहा है और चीन से हथियार। अमेरिका को चीन पर नजर रखने के लिए एक कुत्ता चाहिए और चीन को भारत के खिलाफ एक मोहरा चाहिए। पाकिस्तान दोनों में राजी है। रोटी तो मिल रही है, मालिक कहे छू तो केवल गुर्राना ही तो है।मुंबई हमलों में घिरने के बाद यही पूछ टांगों के बीच छिप गई थी। तब न तो चीन कुछ बोल रहा था न अमेरिका। सभी ने मिलकर मुंबई हमले की निंदा की और पाकिस्तान से दोषियों पर कार्रवाई करने को कहा था। अकेला पड़ गया था, कूं-कूं करने लगा, वार्ता से समस्या का हल निकलेगा, इस तरह आतंकियों को मौका मिलेगा। समय बीतता गया और साथियों का दबाव कम हुआ, चीन के साथ परमाणु करार हो गया और अमेरिका ने फिर से टुकड़े फेंक दिए तो स्थिति क्या है, हमें वार्ता की जल्दबाजी नहीं है, जब वे पूरी तरह तैयार होंगे हम बात कर लेंगे। यह गुर्राहट शाह महमूद कुरैशी की नहीं है, आकाओं की ओर से मिली छूट और हरदम जूते मारने को तैयार रहने वाली पाकिस्तानी फौज और आईएसआई का भय है। इसका नमूना देख लीजिए सेना प्रमुख कियानी और आईएसआई चीफ शूजा पासा के कहने पर पहले कुरैशी ने अकड़ दिखाई, दूसरे दिन कहा कि हम भारत तभी जाएंगे जब वार्ता का सकरात्मक हल निकलेगा। इसी बीच अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन पाकिस्तान पहुंच गईं, उन्होंने कान में मंतर फूंका होगा ज्यादा गुर्राओ मत औकात में रहो, तब बयान आया कि हमने कभी नहीं कहा कि भारतीय विदेश मंत्री ने वार्ता के दौरान दिल्ली फोन पर बात की। उनके अफसर कर रहे थे। यशवंत सिन्हा ने ठीक कहा, इस आदमी में विदेश मंत्री होने के गुण नहीं है। जिस आदमी को यह पता न हो कि प्रतिनिधिमंडल निरंतर अपनी सरकार के संपर्क में रहता ही है, यह एक सामान्य प्रक्रिया है उसे विदेश मंत्री बना किसने बना दिया।
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