Wednesday, July 14, 2010
खंड-खंड पाखंड
भाजपा में जितनी खलबली उमा भारती के पार्टी में रहते थी, उतनी ही हलचल उनके पार्टी से बाहर रहने पर है। आधे नेता चाहते हैं कि उनकी घर वापसी होनी चाहिए और आधे कहते हैं उमा बाहर ही बेहतर हैं। पार्टी के इन अंतर्विरोधों के कारण उमा भारती भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के लिए परेशानी का सबब बन गई हैं।कौन पक्ष में है और कौन विपक्ष में इस पर मत जाइए, पाखंड को खंड-खंड होते देखिए। जिनका दीदी से स्वार्थ सधता है, जो उमा का आर्शीवाद चाहते हैं, वे चाहते हैं कि उमा भारती वापस घर आ जाएं और जिन्हें लगता है कि साध्वी का साथ उनके लिए सन्यास का मार्ग प्रशस्त कर देगा वे चाहते हैं उमा बाहर ही रहें तो बेहतर होगा।कैलाश विजयवर्गीय की देखरेख में सिंहस्थ के लिए सड़कें बनीं थीं। पता चला था कि इन सड़कों पर डामर की जगह टायर जलाकर बिछा दिए गए थे जो पहली ही बारिश में पूरी तरह बह गए। इस समय उमा भारती मप्र की मुख्यमंत्री थीं, हल्ला तो हुआ था पर कार्रवाई क्या हुई आज तक पता नहीं। आज सिंहस्थ घोटाले को लोग भूल चुके हैं, लेकिन विजयवर्गीय को अहसान याद है, वे चाहते हैं कि उमा भारती वापस आ जाएं। दीदी ने इतने बड़े घोटाले पर पर्दा डाल दिया और शिवराज इंदौर की मामूली सी हरकत को दबाने में नाकाम साबित हो रहे हैं।हुबली में तिरंगा फहराने के विवाद पर कुर्सी छोड़ते वक्त उमाजी ने बाबूलाल गौर पर भरोसा जताया था। लेकिन जब वे वापस आईं तो गौर साहब कुर्सी छोडऩे को तैयार नहीं थे। इस खींचतान का नतीजा शिवराज सिंह चौहान के पक्ष में गया। केंद्रीय नेताओं के बीच पैठ रखने वाले कुछ साथियों ने उमा का पत्ता साफ करा दिया। गौर साहब अब चाहते हैं कि उमाजी की वापसी यदि होती भी है तो कम से कम उनके साथ धोखेबाज जैसा व्यवहार न हो, इसलिए वे उंगली कटाकर शहीद होना चाहते हैं।शिवराज सिंह चौहान, अनंत कुमार, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है। यदि उमा भारती पार्टी में वापस आईं और उन्होंने मध्यप्रदेश की मांग की तो सबसे पहली गाज शिवराज सिंह चौहान पर गिरनी है। स्वभाव के अनुरूप वे किसी और का दखल अपने काम में बर्दाश्त नहीं करेंगीं, लिहाजा अनंत कुमार को मप्र से जाना होगा। सुषमा स्वराज के मुकाबले की पार्टी में कोई दूसरी महिला नेत्री नहीं है, उमा के आने से सुषमा का वजन कम होना तय है और अरुण जेटली की रणनीति में उमा का आक्रमण शामिल करना पार्टी की मजबूरी होगी। लिहाजा यह नेता कतई नहीं चाहते कि उमा की वापसी हो।अब इतने सारे और बड़े नेताओं के विरोध के बावजूद पार्टी उमा प्रकरण को जिंदा क्यों रखे है। भाजपा और संघ की यह शाश्वत विवशता है कि पार्टी में हमेशा ऐसे नेताओं की कमी रही है, जिसकी देश में व्यापक अपील हो और आम आदमी में जिसके प्रति सहज आकर्षण हो। अटल-आडवाणी युग में अटल भाजपा और संघ की मजबूरी रहे। कई ऐसे मौके आए जब अटल ने संघ और भाजपा को आइना दिखाया। आडवाणी से उनके मतभेद भी उभरते रहे, लेकिन पार्टी के वे एक मात्र ऐसे नेता थे जिनकी जनता के बीच व्यापक पहुंच थी। अब वह स्थान रिक्त हो गया है। आडवाणी का प्रयास पिछले आम चुनाव में विफल हो चुका है। पार्टी को ऐसा कोई और चेहरा नजर नहीं आता जिसे जनता के बीच भेजा जा सके। हालांकि नरेंद्र मोदी पार्टी के देशव्यापी चर्चित नेता हैं, लेकिन उनकी छवि सर्वमान्य नहीं है। सुषमा, जेटली, नायडू, कुमार यह सब क्षेत्र विशेष तक सीमित हैं। लिहाजा पार्टी को एक ऐसे चेहरे की जरूरत है जो भले ही वोट न कमा सके पर कम से कम जनता उसे सुने तो। उमा भारती में यह कौशल है और पार्टी इसे भुनाना चाहती है। लेकिन उमा अकेले ही भाड़ नहीं फोड़ सकतीं इसलिए उन्हें भी साधना जरूरी है जो क्षेत्र विशेष में वर्चस्व रखते हैं। और इसी स्वार्थ में पार्टी का सत्यानाश हुआ जा रहा है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment