Saturday, June 11, 2011

स्वार्थ के लिए सिद्धांतों को तिलांजलि

राजनीतिक रिश्ते, उनके प्रति निष्ठाएं और प्राथमिकताएं जरूरतों के हिसाब से बदलती रहती हैं। उमा भारती की भारतीय जनता पार्टी में वापसी पार्टी से उनके रिश्ते, निष्ठा और प्राथमिकताएं भी इन्हीं जरूरतों पर आधारित हैं। आज फिर दोनों के स्वार्थ चरम पर हैं, दोनों को एक दूसरे की जरूरत है। उमा भारती को अपने खोए हुए जनाधार को पुन: प्राप्त करने के लिए एक बैनर चाहिए तो भाजपा को एक ऐसा नेता चाहिए जिसे लोग सुनें, जो भीड़ जुटा सके। भाजपा में आज आडवाणी के अलावा ऐसा कोई नेता नहीं है, जिसे सुनने के लिए लोग जुटें और उमा भारती के पास ऐसा कोई विकल्प नहीं है जिसके सहारे वे अपने राजनैतिक कद को पुन: बढ़ा सकें। क्योंकि जिस उमा भारती के लिए भाजपा बड़े नेता दौड़े चले आते थे आज वे चाहे जहां जाएं पद पर बैठा कोई अदना नेता भी उनके स्वागत के लिए नहीं आता। इसलिए उनकी वापसी व्यापारिक सौदे के समान है एक हाथ दे-एक हाथ ले।
1980 के दशक में भारतीय जनता पार्टी को ऐसे लोगों की जरूरत थी, जो आम आदमी के जेहन में हिन्दुत्व की भावना को चरमसीमा तक पहुंचा सकें। यद्यपि संघ में ऐसे लोगों की कमी नहीं थी फिर भी भाजपा ने भगवावस्त्र धारी प्रवचनकर्ता संतों को अपने आप से जोड़ा। उमा भारती उन्हीं में से एक थीं। उमा भारती बचपन से ही प्रवचन करती थीं, गीता के कंठस्थ श्लोक और उनका सूक्ष्म विश्लेषण सुनने वालों को मंत्र मुग्ध कर देता था। स्व। राजमाता सिंधिया के प्रयासों से बुंदेलखंड में उमा भारती भाजपा को कांग्रेस की काट के रूप में मिलीं। हालांकि वे पहला चुनाव 1984 में खजुराहो संसदीय सीट से हार गई थीं, लेकिन इसके बाद उन्होंने 1989 से 1991, 96 तथा 98 लगातार विजयश्री हासिल की और बुंदेलाओं के गढ़ में अब तक न मुरझाने वाला कमल खिलाया। लेकिन लंबी विजयी राजनीतिक यात्रा के बाद भाजपा का उमा से मोहभंग हो गया और उनके स्वयं के अर्जित पुण्य लोक भी नष्ट हो चुके थे। पार्टी को उनकी जितनी जरूरत थी, उससे कहीं अधिक उनका अहंकार बढ़ गया। वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी से एक ही मंत्रालय में रहने के बाद भी टकराव, और दूसरी पंक्ति के नेताओं से स्वयं का श्रेष्ठ और बड़ा समझने का भाव। अब उमा भारती का साध्वी का चोला उतर चुका था, कर्मण्य वाधिकारस्ते, मां फलेषु कदाचन: और जो हुआ अच्छा हुआ, जो हो रहा है वह भी अच्छा है और जो होगा वह भी अच्छा होगा का मर्म समझाने वाली साध्वी उमा भारती अब स्वयं ऐसे कर्मों में लीन हो चुकी थीं जो गीतासार से कोसों दूर थे।
2003 में मध्यप्रदेश में उनके नेतृत्व में जब भाजपा की सरकार बन गई तब तो उनका अहंकार आसमान पर पहुंच गया। उन्होंने गाहे-गवाहे यही प्रचारित किया कि उनके कारण ही पार्टी मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार को हटाने में कामयाब रही है। उन्होंने स्वयं को मां और मध्यप्रदेश को अपना बच्चा तक करार दिया। अपने अहंकार के बशीभूत होकर मध्यप्रदेश की इस 22वीं मुख्यमंत्री को महज 9 माह बाद कर्नाटक में साम्प्रदायिकता फैलाने तथा दंगे भड़काने के आरोप में 23 अगस्त 2004 को त्यागपत्र देना पड़ा। हालांकि इसकी कोई जरूरत नहीं थी, वे चाहतीं तो मुख्यमंत्री रहते हुए भी मामले में पेशी कर सकती थीं, लेकिन गगनगामी अहंकार को ज्ञान का अंकुश नियंत्रित नहीं कर सका। बहरहाल इस मामले में उन्हें बेदाग बरी किया गया, लेकिन पार्टी का स्वार्थ पूरा हो चुका था इसलिए वह उमा भारती का अहंकार सहन करने के मूड में नहीं थी। उमा प्रयास करती रहीं और बाबूलाल गौर कुर्सी छोडऩे को तैयार नहीं हुए। उमा भारती ने सत्ता की लालच में तमाम प्रयास किए। उनकी ऊल-जलूल बयानबाजी पार्टी के लिए सिरदर्द बन गई। हद तो तब हो गई जब भरी सभा में उन्होंने पार्टी के पुरोधा लालकृष्ण आडवाणी को ही नीचा दिखा दिया। इससे खफा पार्टी ने उन्हें कुनबे से बेदखल कर दिया गया। पार्टी से निकलने के बाद उमा भारती ने भाजपा को खूब कोसा और नेताओं को भला-बुरा कहा। यहां तक कि जिन्हें वे पिता तुल्य मानती थीं उन अटल, आडवाणी पर गंभीर आरोप लगाए। जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष बताने पर उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी को भी पार्टी से निष्कासित करने की अपील कर डाली। पार्टी के लिए उनका यह जुमला बड़ा चर्चित हुआ था कि एक विमान चालक है ओर पांच अपहरणकर्ता हैं। उनका इशारा तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी के अलावा प्रमोद महाजन, अरुण जेटली और वेंकैया नायडू, सुषमा स्वराज आदि नेताओं की ओर था।
उमा भारती ने अपनी राजनीतिक पार्टी भारतीय जनशक्ति पार्टी का गठन किया। जिसे जनता ने सिरे से नकार दिया। तब उन्हें पहली बार अहसास हुआ कि पार्टी उनसे नहीं वे पार्टी से हैं। बावजूद इसके उमा भारती ने कई बार भाजपा में न जाने की कसमें खाईं। यहां तक कि जब उनकी घर वापसी के घोर प्रयास चल रहे थे ऐसे समय में भी उन्होंने भाजपा को भ्रष्ट पार्टी करार दिया। साथ ही सुषमा, जेटली और वैंकेया नायडू को गैर जनाधार वाला नेता करार देते हुए कहा था कि यही आधारविहीन नेता पार्टी में उनकी वापसी का विरोध कर रहे हैं। पार्टी के बड़े पदों पर बैठे इन लोगों को झेलना भी उनके लिए मुश्किल होगा। लेकिन वक्त बदला और दोनों ने परस्पर जरूरत को ध्यान में रखकर एक दूसरे को अपनाया। जहाज का जो पंछी जहाज डुबोने की कसमें खा रहा था वापस उसी पर सवार हो गया।

1 comment:

  1. bhartya rajneeti ki kalank gatha bhajpaa tak seemit nahi hai.
    poopre desh me khaadi ke khalniyak hain.
    har or nirantar likhte rahiye..yahi apeksha hai

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