Thursday, June 17, 2010

रांड का स्यापा

भोपाल अदालत के फैसले के बाद गैस पीडि़तों के हितैषियों की बाढ़ सी आ गई। 25 बरस से तमाम रहस्यों पर कुंडली मारे बैठे लोगों का ईमान अचानक जाग उठा। नेताओं को मुद्दा मिल गया और अपना उल्लू सीधा करने का मौका भी। कोई किसी को रौंदकर आगे निकलना चाहता है तो कोई पिछला हिसाब बराबर करना चाहता है, तो किसी के मन में प्रदेश की राजनीतिक महत्वाकांक्षा हिलोर मार रही है। भाजपा के लिए बिल्ली के भाग से छींका टूटा है, वो भला इस मुद्दे को हाथ से कैसे जाने दे सकती है, फिर बचपन में कुछ नहीं कर पाए और जवानी में हाथ में हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने का आरोप झेलना पड़ेगा, सो पिल पड़े...हमें जवाब चाहिए...किसने छोड़ा एंडरसन।

गैस कांड के समय भाजपा की उम्र महज चार थी। कहा जा सकता है तब भाजपा में विरोध करने की ताकत नहीं थी, हालांकि इसके नेता वही थे जिन्होंने जनसंघ के परचम और नाम को बदल कर झंडे में कमल का फूल खिला लिया था। हां यह जरूर कह सकते हैं कि तब यह नेता अपनी सारी ऊर्जा बच्चे को नजला न होजाए, इसमें खर्च कर रहे थे। लेकिन अब भाजपा जवान हो चुकी है, सत्ता सुंदरी का सानिध्य भी पा चुकी है, लिहाजा अब चुप रहना भारी पड़ सकता है, इसलिए सारी सच्चाईयों से बाकिफ होने के बाद भी अर्जुन सिंह से पूछ रही है कि सही क्या है हमें भी बताइए।भोपाल गैस त्रासदी के लिए जिम्मेदार यूनियन कार्बाइड का तत्कालीन अध्यक्ष वॉरेन एंडरसन सरकारी सहायता से भागा यह कोई नई बात नहीं है। सारा देश जानता है कि एंडरसन को भोपाल से दिल्ली तक सरकारी उडऩखटोले से लाया गया था, मीडिया में कई बार इसका खुलासा हो चुका है।
] अब कोई इतना भोला तो नहीं कि सरकारी विमान किसके आदेश से उड़ता है इतना भी न समझ सके। लेकिन तब प्राथमिकताएं जुदा थीं, अब वक्त का तकाजा और है। अब वोट चाहिए सो 25 बरस जिसकी ओर से आंखें मूंदे रहे अब उन्हें पलकों पर बैठाने का समय है। वरना ऐसे कई मौके आए जब गैस पीडि़तों के हक में आवाज बुलंद की जा सकती थी खासतौर पर 1996 में तब जब सुप्रीम कोर्ट ने गैस कांड के आरोपियों के खिलाफ गैर इरादतन हत्या को लापरवाही से हुई मौत का केस तैयार करने की व्यवस्था दी गई थी। सभी को पता था कि केस की हांडी में मथी जा रही नई धाराओं से गैस पीडि़तों को न्याय नहीं मिलेगा और अपराधी आसानी से आजाद हो जाएंगे। लेकिन तब किसी के मन में पुनरीक्षण याचिका दायर करने की बात नहीं आई, इसके उलट तब कोशिश की जा रही थी कि यूनियन कार्बाइड का मालिकाना हक डाउ केमिकल्स को कैसे मिले, इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार के मंत्री दिन रात एक किए हुए थे। यहां तक कि देश के सम्मानित उद्योगपति रतन टाटा भी डाउ के पक्ष में उतर आए थे, गृह मंत्री पी चिदंबरम ने प्रधानमंत्री को खत लिख डाला था कि रतन टाटा की अगुवाई में एक समिति बना दी जाए जो इस मामले पर काम करेगी। अरुण जेटली भी डाउ केमिकल्स के समर्थन में थे। मध्यप्रदेश सरकार के गैस त्रासदी एवं पूनर्वास मंत्री बाबूलाल गौर ने पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट के आधार पर सीआईसी की रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि यूनियन कार्बाइड के चारों ओर की आबोहवा जहरीली है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश जो आज अदालत के फैसले पर दुख जता रहे हैं, तब गैस पीडि़तों की खिल्ली उड़ाई थी। यूका फैक्ट्री की मिट्टी हाथ में उठाकर कहा था देखो मेरे हाथ तो नहीं गले, यहां सब ठीक है। और आज शोक जता रहे हैं, आयोग और समितियां गठित की जा रही हैं।इन दोगले नेताओं में बाबूलाल गौर और जयराम रमेश अकेले नहीं हैं। वे सभी नेता और अधिकारी तब बहुत कुछ कर सकते थे जो आज अपना उल्लू सीधा करने में लगे हुए हैं। बसंत साठे, जनार्दन द्विवेदी, पीसी अलेक्जेंडर, स्वराज पुरी, मोती सिंह आदि-आदि। बसंत साठे तब के कद्दावर नेताओं में से एक हैं, उन्हें आज याद आ रहा है कि सरकार की शहर पर एंडरसन को छोड़ा गया। जनार्दन द्विवेदी और अलेक्जेंडर तब दूध नहीं पीते थे। हां सत्यव्रत चतुर्वेदी और शिवराज सिंह चौहान की जरूर तब राजनीति में कोई हैसियत नहीं थी, पर दिग्विजय सिंह अर्जुन सिंह के कार्यकाल में पशुपालन मंत्री की कुर्सी पर बैठे थे। तब इनमें से किसी ने नहीं बोला कि अर्जुन क्या कर रहे हो। हर आदमी की जुबान में ताला लगा हुआ था। आज ईमान जागा। लोकसाहित्य में इसे रांड का स्यापा कहते हैं जो अपने पति को जहर देकर मार देती है फिर उसकी लाश पर आंसू बहाती है।बसंत साठे, जनार्दन द्विवेदी, दिग्विजय सिंह, सत्यव्रत चतुर्वेदी ये सब अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। कोई पुराना बदला निकाल रहा है तो किसी को प्रदेश की राजनीति में अपनी जड़ें जमाए रखना चाहता है। पुरानी मराठी लॉबी सोनिया को पसंद नहीं करती, शरद पवार की बगावत इसका उदाहरण है तो कुछ ऐसे हैं जो चाहते हैं कि अर्जुन मुंह खोलें और राहुल के बढ़ते कदमों में अवरोध पैदा हो जाए। अन्यथा कौन नहीं जानता भाजपा या कांग्रेस, कि किसी व्यक्ति को अचानक सरकारी विमान से भगाने में कितनी बड़ी ताकत लगी हुई होगी और न भी लगी हो तो उसकी जानकारी के बिना इतना बड़ा फैसला असंभव है। लिहाजा अब इन बातों का कोई तुक नहीं है कि अर्जुन सिंह मुंह खोलें और दुनिया को बताएं कि राजीव गांधी के कहने पर मैंने लाशों के ढेर पर खड़े होकर कातिल को गैर कानूनी तरीके से जमानत दिलवाकर दिल्ली भेजा जहां से वह देश को मुंह चिढ़ाता अमेरिका चला गया।

3 comments:

  1. जिन्दा लोगों की तलाश! मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!

    काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
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    उक्त शीर्षक पढकर अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन सच में इस देश को कुछ जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है।

    आग्रह है कि बूंद से सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो निश्चय ही विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।

    हम ऐसे कुछ जिन्दा लोगों की तलाश में हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।

    इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।

    अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।

    अतः हमें समझना होगा कि आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।

    शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-

    सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?

    जो भी व्यक्ति स्वेच्छा से इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय अध्यक्ष
    भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
    7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
    फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
    E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in

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  2. भोपाल त्रासदी के इस आलेख के माध्यम से आपने छद्म सहानुभूति प्रदर्शित करते नेताओं की हकीकत प्रकट कर दी है। सटीक जानकारी के लिये साधुवाद।

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  3. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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