Tuesday, June 29, 2010

समृद्ध दिख रहे देश के भूखे देशवासियों

माननीय मनमोहन सिंह जी
प्रधानमंत्री भारत
समृद्ध दिख रहे देश के भूखे देशवासियों का प्रणाम।
आगे समाचार यह है कि आर्थिक मामलों के मंत्री समूह के निर्णय और किरीट पारिख समिति के कुठाराघात से हम सपरिवार संताप झेल रहे हैं लेकिन इस बात का पूरा विश्वास है कि आप अपनी सरकार के मंत्रियों, घटक सहयोगियों के साथ प्रसन्न चित्त और सेहतमंद होंगे। कनाडा में जब दुनिया के दरोगा ने कहा कि मनमोहन सिंह बोलते हैं तो दुनिया सुनती है, यकीन जानिए हमारा सीना चौड़ा हो गया।
देश में चौतरफा आपकी दूरदर्शिता और वचनबद्धता की जय जयकार हो रही है। अपने बचन पर दृढ़ रहते हुए आपने पेट्रोल, डीजल, कैरोसिन और रसोई गैस के भाव बढ़ाकर देशावासियों को जो संताप दिया है उसके लिए विपक्ष आपका हृदय से आभारी है, यह और बात है कि वह इसके लिए आपको सार्वजनिक रूप से धन्यवाद ज्ञापित नहीं कर पा रहा है। आपने उसे जनता के आंसुओं से अपनी सूखती राजनीति को सींचने का भरपूर मौका दिया है और कोशिश कर रहा है कि अगले आम चुनाव में वोटों की अच्छी फसल काट सके।
आपका गरीबी हटाओ अभियान भी पूर्णत: सार्थक हो रहा है। गरीब धीरे-धीरे से भारत भूमि से घट रहे हैं, नए गरीब उनकी जगह ले रहे हैं। यह विशेष चिंता की बात नहीं, जिस प्रकार आर्थिक नीतियों के हवन कुड में 'दैहिक आहुतियांÓ दी जा रहीं हैं जल्द ही गरीब खत्म हो जाएंगे। अभी कल ही आपके गरीब हटाओ अभियान के सम्मान में रामसुख की घरवाली पुनिया ने आत्महत्या कर ली है, रामसुख की देह देखकर पता लगाना कठिन हो चला है कि उसका पेट किस तरफ है। बच्चे भूख से बिलबिला रहे हैं, पूरा का पूरा परिवार चंद दिनों में धरती से विदा हो जाएगा।
दीनदयाल किसान के भी यही हाल हैं। पिछले साल कर्ज लेकर किसानी की थी, पानी नहीं मिला सो फसल सूख गई और अब खाना न मिलने से वह भी सूखता जा रहा है। बच्चे को हफ्तों से दूध नहीं मिला है, क्योंकि सुखिया का आंचल फांके काटते-काटते सूख गया है, गाय-भैंस का दूध खरीदने की औकात नहीं है। फूलवती के जीवन के फूल मुरझा गए हैं। शादी तो कबकी तय हो चुकी है, लेकिन लोकरीति निभाने लायक भी उसका बाप पैसा नहीं जोड़ पा रहा है। लड़के वालों ने कह दिया है यदि जल्द विवाह न हुआ तो फिर रिश्ता खत्म ही समझो।
नामुराद चुन्नीलाल की सभी औलातों ने पढ़ाई छोड़कर आपके शिक्षा के अधिकार कानून को अपने हाथ में ले लिया है। बताते हैं कि 50-60 साल पहले एक प्रायमरी स्कूल उनके गांव में बना था, जहां पांचवें दर्ज तक पढ़ाई होती है। इसके बाद पढऩे के लिए उन्हें गांव से कोई 10 किलोमीटर पढऩे जाना पड़ता है। जितनी देर पढ़ते नहीं हैं उतनी देर सफर करना पड़ता है। फिर महंगाई के मारे परिवार का गुजारा भी एक आदमी से नहीं हो रहा है, इसलिए सभी बच्चे अब कोई न कोई काम करेंगे और परिवार की माली हालत सुधारने की कोशिश करेंगे। हां परमलाल का लड़का जरूर शहर के किसी अच्छे स्कूल में पढऩा चाहता था, लेकिन वहां की फीस चुका पाना उसके परदादा के भी बस में नहीं है, इसलिए उसने भी अभी से कुछ काम धंधे की जुगाड़ शुरू कर दी है।
एक और अच्छी खबर है। आपकी इच्छामात्र से उत्पन्न महंगाई के दैत्य ने गणपत की संतान को जन्म लेते ही लील लिया। गणपत की घरवाली बच्ची को जन्म देते ही स्वर्ग सिधार गई और थोड़ी देर में बच्ची भी मां के साथ चल दी। बताते हैं कि डॉक्टरों ने उसे जो दवाएं और जैसा खाने को कहा था वैसा उसके पूरे खानदान की कमाई मिलाकर भी नहीं मिला। रात को दर्द हुआ था, सुबह तक गणपत एंबुलेंस का इंतजार करता रहा, जब नहीं आई तो टोनी भाई की कार मांगी, उन्होंने पेट्रोल डीजल के महंगे होने का रोना रो दिया और जो किराया मांगा वह गणपत दे नहीं सका।
हां टोनी भाई दुखी हैं, बेशर्म पार्टी के कार्यकर्ता हैं, साइकिल की दुकान खोलने की सोच रहे हैं। उनका विचार है कि डॉक्टर साहब तेल का दाम कुछ और बढ़ाते तो नए धंधे के चलने में संसय न रह जाता। फिर भी कह रहे थे, ससुरे बहुत फटफटिया चलाते थे, सरदार जी ने ला दिया औकात में। सीताशरण भैया भी सेहतमंद हैं, तोंद दिनों-दिन बढ़ती जा रही है, गांव के राशन की दुकान उनके नाम से है और अब वार्ड मेम्वरी का चुनाव लडऩे का विचार कर रहे हैं, सो राशन में जमकर घालमेल चल रहा है। पारिख साहब की समिति ने कैरोसिन का कोटा कम करने की सिफारिश की थी, बस यही रंह है कि उनकी यह मुराद आपने पूरी नहीं की। हालांकि संतोष है कि उन्होंने तभी से तेल जमा करके रखा है। पूरी प्लानिंग की है, किसको कितना देना है। मोटर-गाड़ी की सूची अलग है और गरीब-गुरवों की अलग। ब्लैक का कोटा तो तहखाने में छिपाकर रखा है इसकी किसी को जानकारी नहीं।
दीनू जरूर कुछ परेशान सा दिख रहा था। अम्मा रोज गरियाती है, क्या कर लिया पढ़लिख कर, काम का रहा न काज का। साला मध्यमवर्गीय! हमने भी तो कहा था काहे को ज्यादा पढ़ाई लिखाई कर रहा है, न मजूरी कर पाएगा न अफसर बन पाएगा और आखिर वही हुआ, आ गई अकल ठिकाने पै। ससुरा बकवास करता रहता है, कहता है कि हमने तो उम्मीद की थी आर्थिक उदारीकरण से देश के आर्थिक विकास को गति देने वाले अर्थशास्त्री ऐसे उपाय करेंगे जिससे गरीबी-अमीरी के बीच की खाई सिमटेगी, लेकिन उन्होंने उस खाई को गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों की कब्र बनाकर रख दिया। उदारीकरण उधारीकरण में बदल गया है। मैंने कर्जा लेकर पढ़ाई की थी और बाप ने कर्जा लेकर खेती की थी, न तो नौकरी मिली और फसल ठीक आई, अब कर्जा सिर पर है। नॉन बैंकिंग की आड़ में साहूकारों ने कर्ज की दुकानें खोल रखी हैं, सरकारी बैंक का बाबू कर्ज देने से पहले कपड़े उतारने पर उतारू रहता है और नॉन बैंकिंग वाले कर्ज देने के बाद जीना मुश्किल कर देते हैं।
पर चिंता जैसी कोई बात नहीं है। सबने देखा कि दुनिया के दरोगा ने सबके सामने कहा है कि जब मनमोहन सिंह जी बोलते हैं तो सारी दुनिया सुनती है, आप जितने गदगद हुए हम भी उतने ही गदगद हुए। गरीबों का क्या उनको ये बातें समझ तो आती नहीं, काहे का विकास, वित्तीय प्रबंधन और आर्थिक विकास दर, उसे तो रोटी से मतलब है, नामुराद खाने के लिए न जाने क्या-क्या करते हैं, फिर भी पेटभर रोटी नहीं जुटा पाते। अंत में जो लिखा है कम ही समझना, समाचार तो इससे भी अच्छे-अच्छे भी हैं। एक मुर्दा शमसान में चिल्ला रहा है मुझे फूक दो, पर लकडिय़ां महंगाई दैत्य के कब्जे में हैं, गुजारिश करने जा रहे हैं, मिल जाएंगीं तो कम से कम मुर्दा सडऩे से बच जाएगा।

No comments:

Post a Comment