Sunday, July 3, 2011

लोकपाल फंस गया गुंडों में

लोकपाल बिल पूरी तरह से सियासी गुंडों में फंस गया है, उसे बचाना मुश्किल है, अन्ना चाहे 10 सिर के हो जाएं। विपक्ष ने संसदीय समिति में भेजने का सुझाव देकर एक तरह से लोकपाल की भू्रण हत्या की व्यवस्था बना दी है। यदि सरकार ऐसा करती है तो लोकपाल पहले तो संसद की वीथियों में फिरकी बना रहेगा दूसरा अन्ना यदि उतावलापन दिखाते हैं तो उसे संसद की अवमानना समझा जाएगा।

रंग बदलने में उस्ताद नेता यदि गिरगिट के सामने आ जाएं तो गिरगिट इन्हें अपना गुरू बना लेगा। आज हुई सर्वदलीय बैठक में नेताओं ने जिस तरह की प्रतिक्रिया दी उससे साफ हो गया कि राजनीतिक दलों को लोकपाल की चिंता नहीं बल्कि इस बात का अपमानबोध है कि मसौदा समिति बनाते वक्त सरकार ने उनसे मश्विरा क्यों नहीं किया। हालांकि जब अन्ना अनशन पर बैठे थे तब यही दल सरकार को कोसने में लगे थे।

मसौदा समिति बनाते वक्त सरकार की ओर से जितनी राजनीतिक नीतियों को तोड़ा, नेता उतना ही कमीनापन दिखा रहे हैं। जब कोई राय जाहिर करनी ही नहीं थी तो सर्वदलीय बैठक में क्यों शामिल हुए समझ में नहीं आया। पहले ही कहा जा सकता था कि इस बैठक का कोई मतलब नहीं हम सीधे संसद में बात करेंगे।

जब चाहते थे कि सरकार लोकपाल बिल के लिए राजनीतिक दलों से रायसुमारी करे तो पहले अन्ना का समर्थन करके समिति की अधिसूचना जारी करने का सरकार पर दबाव क्यों बनाया गया था। इससे साफ हो गया कि लोकपाल को लेकर विपक्षी दलों का इरादा और नीयत उतनी ही घटिया है, जितनी सरकार की।

मेरे पास यदि कोई जिन्न होता और पूछता कि आका क्या चाहिए तो मैं उससे कहता कि इन सारे नेताओं को उठाकर प्रशांत महासागर में फेंक दे।

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