थोड़ा सा लंबा है भाई पर पढ़ लेना, मैंने मेरी सरकारों को बचाने की पूरी कोशिश की है, फिर भी कोई त्रुटि रह गई हो तो क्षमा कर देना।
लोग भी गजब करते हैं, आरोप लगा नहीं कि आरोपी को पापी मानने लगते हैं। भैया पहले अखबारबाजी होगी, फिर सरकार जागेगी, फिर जांच होगी और काम नहीं चला तो उच्च स्तरीय जांच का ड्रामा होगा और इससे भी काम नहीं चला तो कोई स्वतंत्र आयोग जांच करेगा, फिर अदालत में जिरह-बहस होगी, गवाही होगी, यदि सबूत मिले, गवाहों को डराया, धमकाया, खरीदा नहीं गया तो वो सच बोलेगा...इसके बाद आरोप सिद्ध होगा। तब बोलिए कि फलां आदमी ने गलत किया...पहले से ही चिल्लाने लगते हैं...फलां ऐसा है ढिमका ऐसा है। और अगर बात नेताओं की हो तो वैसे ही बोलने से पहले लाख बार सोचना चाहिए, भले ही बोलने में कोई टैक्स नहीं लगता, क्योंकि जांच की चौड़ाई और अदालती कार्रवाई की लंबाई में ऐसे कई चौराहे होते हैं जहां से नेताजी पाक-साफ बच सकते हैं।
दूसरी बात- भारतीय संविधान ने हर आदमी को अपनी सुख सुविधाओं की पूर्ति का अधिकार दिया है, राजनीति से जुड़े लोगों का कोटा डबल है, इसलिए भी थोड़ा सब्र करना चाहिए। बस उठाई जीभ और तालू से दे मारी...'चाल, चरित्र और चेहरे की दुहाई देने वाली भाजपा के कई मंत्री दागी हैं और भाजपा उन्हें प्रश्रय दे रही है।Ó बडबुक कहीं के...भैया इनका तो सूत्र ही है वयं रक्षाम्...शिवराज सिंह चौहान के मंत्रियों और विधायकों ने अपने दैहिक सुख की रक्षा की...नोट कमा कर अपने परिवार के भविष्य की रक्षा की...हत्या के सबूत मिटाकर अपने बेटे की रक्षा की... तो क्या गुनाह किया। फिर क्यों चाहते हैं कि इन्हें भाजपा पार्टी से निकालकर इनके मानवाधिकारों का हनन करे।
आपको लगता है कि प्रदेश के स्वाथ्य मंत्री अनूप मिश्रा जी को बेलगांव हत्याकांड में क्लीनचिट मिल गई और सरकार सुप्रीम कोर्ट में जाने का नाटक करती रही। करना पड़ता है, जांघ में घाव हो तो कोई जांघ काटकर थोड़े ही फेंक देता है...उसकी दवा-दारू की जाती है। देखा नहीं हत्याकंाड के बाद कितने सारे लोग एक साथ एक साथ खड़े हो गए थे...हमने मारा...हमने मारा। आप बेवजह लगे हैं कि मिश्रा जी ने इन्हें खरीद लिया था। चलो खरीद भी लिया था तो अपनी रक्षा करना कोई पाप तो नहीं। ऐसे ही कमल पटेल साहब पर कीचड़ उछालते रहते हैं...बेचारे वही तो कर रहे थे जो हर बाप करता है। है कोई माई का लाल जो अपने बेटे को जेल की हवा खाने दे और तब जबकि पक्का हो जाए कि आरोप सिद्ध हुए तो जीवन जेल में गुजर जाएगा। गरीब दुर्गेश के जीवन और उसके बूढ़े बाप को मिलने वाले न्याय का क्या मोल...लेकिन कमल पटेल के चिरंजीवी भविष्य के नेता थे। इसलिए तो पार्टी कहती है कि कमल पटेल को साजिश के तहत फंसाया जा रहा है। असल बात यह है कि कमल पटेल ने मजबूरी में प्रदेश को एक नेता देने के लिए हत्याकांड के सारे सबूत मिटाए...समझे।
अब आपको यह भी लगता है कि पूर्व मंत्री जुगलकिशोर बागरी, ओमप्रकाश धु्रवे, पशुपालन मंत्री अजय विश्नोई, खाद्य मंत्री पारसचंद्र जैन, कैलाश विजयवर्गीय...इन सभी ने पद का दुरुपयोग किया है। नहीं...यह पद का दुरुपयोग नहीं...परिवार के प्रति दायित्व है। आप भी काम करते हैं, कमाते हैं, जोड़कर रखते हैं..भविष्य के लिए। इन्होंने ने भी वही किया...आप क्या चाहते हैं ये बिना तिलक के राजा आपकी तरह मेहनत-मजदूरी करें, भई उनके पास कमाने के जो साधन हैं उन्हीं से तो कमाएंगे। आप भले ही भारत भाग्य विधाता बने रहें पर आपको कोई रिश्वत देने आता नहीं, आयकर बचाने लायक धन है नहीं, सादगी पसंद ठहरे इसलिए खर्च करने के लिए आपको अनाप-शनाप पैसे की जरूरत नहीं...पर इनके पास है इसलिए इसका ध्यान रखना भी तो इन्हीं का फर्ज है न। लोकायुक्त और आयकर विभाग वाले क्या इन जरूरतों को पूरा कर सकते हैं...चले आते हैं सिफारिश लेकर...भैया सांप के पैर सांप को ही दिखाई देते हैं, नेता जी को अपने समर्थकों को बांटने के लिए, चुनावों में खर्चे के लिए, विलासिता के लिए जितना धन चाहिए उतना कमाने का तो उन्हें अधिकार है। फिर बिना मेहनत के तो कमाते नहीं, कितना परिश्रम करते हैं, श्रीमान जी आपको क्या पता अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए इन्हें तेंदुपत्ता तोडऩे वाला मजदूर तक कहलाना पड़ता है।
और ये तो हद ही हो गई, व्यक्तिगत जीवन में दखल देना अच्छी बात नहीं है। जिस तरह पेट की भूख है उसी तरह काम की भूख है, आदमी के पास रोटी न हो तो फल खाकर काम चला सकता है, वह भी न हो तो पानी पीकर काम चला ले, लेकिन इसका तो कोई विकल्प नहीं है न भैया...खबरची चले तो सीडी बना लाए और बेचारे मंदसौर जिलाध्यक्ष करूलाल सोनी का कारनामा जगजाहिर कर दिया। ऐसा ही घोर अपराध आपने राजगढ़ के जिला अध्यक्ष दीपेंद्र सिंह चौहान, सीहोर विधायक रमेश सक्सेना और बिजावर की विधायक आशा रानी के साथ किया। आशारानी का तो कोई अपराध हो ही नहीं सकता। सुना नहीं कालांतर में दुष्ट राजा महाराज जिसे पसंद कर लेते थे उसे जबरदस्ती अपने हरम में ले आते थे। आशारानी के क्रूर पति अशोक वीर विक्रम सिंह के चंगुल में बेचरी तिज्जीबाई फंस गई। विक्रम सिंह का इसमें दोष नहीं है, दोष है उनके संस्कारों का, जिनका हरहाल में साथ देना धर्म है पत्नी का, यानि आशारानी का। और आशारानी का साथ देना धर्म है उनकी पार्टी का, सो पार्टी वही कर रही है। आशारानी और विक्रम सिंह दोनों को जमानत मिल गई है...पर ध्यान रहे अभी केवल आरोपी हैं...। शेहला हत्याकांड में भी जाहिदा के बयानों पर मत जाइए, सुना नहीं था पिछले दिनों कैलाश विजयवर्गीय साहब ने कहा था कि सीबीआई कांग्रेस एजेंट की तरह काम कर रही है। विधायक धु्रव नारायण सिंह तो किशन कन्हैया हैं, पर्यटन जैसा खुशनुमा विभाग उनके पास था तो अपनी कल्पनाओं से उकेरे सृजन से घर को अंदर से खूबसूरत बनाने वाली जाहिदा का उनसे पास आना-जाना कोई गलत थोड़े ही है। देशी-विदेशी सैलानी आते हैं उनको जहां रुकने में पुरसुकून हासिल हो इसके लिए एक हुनरमंद इंटीरियर डिजाइनर से उनका मिलना-जुलना गलत नहीं है। अब रही बात थोड़ा और आगे जाने की तो बड़े-बड़े तपस्वी फिसल सकते हैं, फिर ध्रुवनारायण का फिसलना तो वही बात हुई 'मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा... भैया यह भी तप है। कितना रिश्क उठाया होगा जब जाहिदा का रजिस्ट्रेशन कराया होगा, तमाम ठेके दिए होंगे, मजाक थोड़े ही है। फिर जाहिदा ने भी अपना फर्ज निभाया, जिससे कुछ लिया उसे कुछ दिया, ध्रुव ने ओहदे का इस्तेमाल किया उसने खुद का इस्तेमाल किया। आपका क्या लिया...कहो। धु्रव भैया भी अभी आरोपी हैं .....।
और ये क्या आप तो दिल्ली भी पहुंच गए, राष्ट्रभक्तों के पास। राजा भैया जी, कलमाड़ी भैया जी, शीला आंटी जी, और 'आदर्श-वादी भैयाओं को भी जमकर कोसते रहते हैं। देखिए यह अंतर है गुमठी, दुकान और शौरूम का। गुमठी में कम कमाई होती है, क्योंकि लागत भी कम लगती है। दुकान में थोड़ा अधिक लागत लगती है तो कमाई भी ज्यादा करनी पड़ती है और शोरूम तो लाखों के पार जाता है तो कमाई भी करोड़ों में करनी होगी न। राजा भैया तो मजबूर थे, बमुश्किल राडिया फाडिया न जाने किस-किस की लॉबिंग से तो नेता बने, फिर यह डर कि न जाने काले चश्मे वाले बाबा कब समर्थन वापस लेने लेने के लिए कहें कि इस्तीफा दे दो, तो जहां मौका मिला, 2जी की तरंगों में लपेट कर रुपैया खीसे में भर लिया। दयानिधि, कलानिधि और वो करुणा की आंख की पुतली अब सभी एक किश्ती में सवार हो गए तो आपको लगा कि लोड ज्यादा हो गया। और हमारे मन्नू लाल..अरे यार मनमोहन सिंह जी बड़े ही समुद्र सदृश्य हृदय वाले हैं वे भी जानते थे कि न जाने इन्हें कब मौका मिले सो उन्होंने भी कह दिया खा ले बेटा खा ले। अब रहे कलमाड़ी जी और शीला आंटी, ये घर वाले लोग हैं। घर का बेटा कमाऊ हो तो किसे बुरा लगता है, क्या आप अपने परिजनों को रोकते हैं कमाने 'खानेÓ से। और आदर्श-वादियों का तो पूछिए ही मत। शहीदों के हक पर डाका डाला तो आपको गुस्सा आ गया, जिंदा जवानों को तड़पाते हैं तब आपको गुस्सा नहीं आता। फिर भी आपने कहा तो कुछ लोगों को जेल में डालने की नौटंकी कर दी। अब आप क्या चाहते हैं क्या फांसी पर ही चढ़ा दें...पहले पापी तो साबित होने दीजिए। अब आप कहेंगे हमें देश की चिंता है, पहली बात जो लग रही है कि आपने सच्ची कही। भैया आप इसीलिए हैं, आप परमार्थ नहीं करेंगे तो अधिकारबोध से भरे नेताजी एक दिन देश को भी जींम जाएंगे। इसलिए आप देश की रक्षा कीजिए, और वोट देने के अधिकार पर रोइए। क्योंकि आपके पास विकल्प नहीं है और उन्होंने गैरत बेच डाली है। पर ध्यान रहे वे अभी सिर्फ आरोपी हैं....।
लोग भी गजब करते हैं, आरोप लगा नहीं कि आरोपी को पापी मानने लगते हैं। भैया पहले अखबारबाजी होगी, फिर सरकार जागेगी, फिर जांच होगी और काम नहीं चला तो उच्च स्तरीय जांच का ड्रामा होगा और इससे भी काम नहीं चला तो कोई स्वतंत्र आयोग जांच करेगा, फिर अदालत में जिरह-बहस होगी, गवाही होगी, यदि सबूत मिले, गवाहों को डराया, धमकाया, खरीदा नहीं गया तो वो सच बोलेगा...इसके बाद आरोप सिद्ध होगा। तब बोलिए कि फलां आदमी ने गलत किया...पहले से ही चिल्लाने लगते हैं...फलां ऐसा है ढिमका ऐसा है। और अगर बात नेताओं की हो तो वैसे ही बोलने से पहले लाख बार सोचना चाहिए, भले ही बोलने में कोई टैक्स नहीं लगता, क्योंकि जांच की चौड़ाई और अदालती कार्रवाई की लंबाई में ऐसे कई चौराहे होते हैं जहां से नेताजी पाक-साफ बच सकते हैं।
दूसरी बात- भारतीय संविधान ने हर आदमी को अपनी सुख सुविधाओं की पूर्ति का अधिकार दिया है, राजनीति से जुड़े लोगों का कोटा डबल है, इसलिए भी थोड़ा सब्र करना चाहिए। बस उठाई जीभ और तालू से दे मारी...'चाल, चरित्र और चेहरे की दुहाई देने वाली भाजपा के कई मंत्री दागी हैं और भाजपा उन्हें प्रश्रय दे रही है।Ó बडबुक कहीं के...भैया इनका तो सूत्र ही है वयं रक्षाम्...शिवराज सिंह चौहान के मंत्रियों और विधायकों ने अपने दैहिक सुख की रक्षा की...नोट कमा कर अपने परिवार के भविष्य की रक्षा की...हत्या के सबूत मिटाकर अपने बेटे की रक्षा की... तो क्या गुनाह किया। फिर क्यों चाहते हैं कि इन्हें भाजपा पार्टी से निकालकर इनके मानवाधिकारों का हनन करे।
आपको लगता है कि प्रदेश के स्वाथ्य मंत्री अनूप मिश्रा जी को बेलगांव हत्याकांड में क्लीनचिट मिल गई और सरकार सुप्रीम कोर्ट में जाने का नाटक करती रही। करना पड़ता है, जांघ में घाव हो तो कोई जांघ काटकर थोड़े ही फेंक देता है...उसकी दवा-दारू की जाती है। देखा नहीं हत्याकंाड के बाद कितने सारे लोग एक साथ एक साथ खड़े हो गए थे...हमने मारा...हमने मारा। आप बेवजह लगे हैं कि मिश्रा जी ने इन्हें खरीद लिया था। चलो खरीद भी लिया था तो अपनी रक्षा करना कोई पाप तो नहीं। ऐसे ही कमल पटेल साहब पर कीचड़ उछालते रहते हैं...बेचारे वही तो कर रहे थे जो हर बाप करता है। है कोई माई का लाल जो अपने बेटे को जेल की हवा खाने दे और तब जबकि पक्का हो जाए कि आरोप सिद्ध हुए तो जीवन जेल में गुजर जाएगा। गरीब दुर्गेश के जीवन और उसके बूढ़े बाप को मिलने वाले न्याय का क्या मोल...लेकिन कमल पटेल के चिरंजीवी भविष्य के नेता थे। इसलिए तो पार्टी कहती है कि कमल पटेल को साजिश के तहत फंसाया जा रहा है। असल बात यह है कि कमल पटेल ने मजबूरी में प्रदेश को एक नेता देने के लिए हत्याकांड के सारे सबूत मिटाए...समझे।
अब आपको यह भी लगता है कि पूर्व मंत्री जुगलकिशोर बागरी, ओमप्रकाश धु्रवे, पशुपालन मंत्री अजय विश्नोई, खाद्य मंत्री पारसचंद्र जैन, कैलाश विजयवर्गीय...इन सभी ने पद का दुरुपयोग किया है। नहीं...यह पद का दुरुपयोग नहीं...परिवार के प्रति दायित्व है। आप भी काम करते हैं, कमाते हैं, जोड़कर रखते हैं..भविष्य के लिए। इन्होंने ने भी वही किया...आप क्या चाहते हैं ये बिना तिलक के राजा आपकी तरह मेहनत-मजदूरी करें, भई उनके पास कमाने के जो साधन हैं उन्हीं से तो कमाएंगे। आप भले ही भारत भाग्य विधाता बने रहें पर आपको कोई रिश्वत देने आता नहीं, आयकर बचाने लायक धन है नहीं, सादगी पसंद ठहरे इसलिए खर्च करने के लिए आपको अनाप-शनाप पैसे की जरूरत नहीं...पर इनके पास है इसलिए इसका ध्यान रखना भी तो इन्हीं का फर्ज है न। लोकायुक्त और आयकर विभाग वाले क्या इन जरूरतों को पूरा कर सकते हैं...चले आते हैं सिफारिश लेकर...भैया सांप के पैर सांप को ही दिखाई देते हैं, नेता जी को अपने समर्थकों को बांटने के लिए, चुनावों में खर्चे के लिए, विलासिता के लिए जितना धन चाहिए उतना कमाने का तो उन्हें अधिकार है। फिर बिना मेहनत के तो कमाते नहीं, कितना परिश्रम करते हैं, श्रीमान जी आपको क्या पता अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए इन्हें तेंदुपत्ता तोडऩे वाला मजदूर तक कहलाना पड़ता है।
और ये तो हद ही हो गई, व्यक्तिगत जीवन में दखल देना अच्छी बात नहीं है। जिस तरह पेट की भूख है उसी तरह काम की भूख है, आदमी के पास रोटी न हो तो फल खाकर काम चला सकता है, वह भी न हो तो पानी पीकर काम चला ले, लेकिन इसका तो कोई विकल्प नहीं है न भैया...खबरची चले तो सीडी बना लाए और बेचारे मंदसौर जिलाध्यक्ष करूलाल सोनी का कारनामा जगजाहिर कर दिया। ऐसा ही घोर अपराध आपने राजगढ़ के जिला अध्यक्ष दीपेंद्र सिंह चौहान, सीहोर विधायक रमेश सक्सेना और बिजावर की विधायक आशा रानी के साथ किया। आशारानी का तो कोई अपराध हो ही नहीं सकता। सुना नहीं कालांतर में दुष्ट राजा महाराज जिसे पसंद कर लेते थे उसे जबरदस्ती अपने हरम में ले आते थे। आशारानी के क्रूर पति अशोक वीर विक्रम सिंह के चंगुल में बेचरी तिज्जीबाई फंस गई। विक्रम सिंह का इसमें दोष नहीं है, दोष है उनके संस्कारों का, जिनका हरहाल में साथ देना धर्म है पत्नी का, यानि आशारानी का। और आशारानी का साथ देना धर्म है उनकी पार्टी का, सो पार्टी वही कर रही है। आशारानी और विक्रम सिंह दोनों को जमानत मिल गई है...पर ध्यान रहे अभी केवल आरोपी हैं...। शेहला हत्याकांड में भी जाहिदा के बयानों पर मत जाइए, सुना नहीं था पिछले दिनों कैलाश विजयवर्गीय साहब ने कहा था कि सीबीआई कांग्रेस एजेंट की तरह काम कर रही है। विधायक धु्रव नारायण सिंह तो किशन कन्हैया हैं, पर्यटन जैसा खुशनुमा विभाग उनके पास था तो अपनी कल्पनाओं से उकेरे सृजन से घर को अंदर से खूबसूरत बनाने वाली जाहिदा का उनसे पास आना-जाना कोई गलत थोड़े ही है। देशी-विदेशी सैलानी आते हैं उनको जहां रुकने में पुरसुकून हासिल हो इसके लिए एक हुनरमंद इंटीरियर डिजाइनर से उनका मिलना-जुलना गलत नहीं है। अब रही बात थोड़ा और आगे जाने की तो बड़े-बड़े तपस्वी फिसल सकते हैं, फिर ध्रुवनारायण का फिसलना तो वही बात हुई 'मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा... भैया यह भी तप है। कितना रिश्क उठाया होगा जब जाहिदा का रजिस्ट्रेशन कराया होगा, तमाम ठेके दिए होंगे, मजाक थोड़े ही है। फिर जाहिदा ने भी अपना फर्ज निभाया, जिससे कुछ लिया उसे कुछ दिया, ध्रुव ने ओहदे का इस्तेमाल किया उसने खुद का इस्तेमाल किया। आपका क्या लिया...कहो। धु्रव भैया भी अभी आरोपी हैं .....।
और ये क्या आप तो दिल्ली भी पहुंच गए, राष्ट्रभक्तों के पास। राजा भैया जी, कलमाड़ी भैया जी, शीला आंटी जी, और 'आदर्श-वादी भैयाओं को भी जमकर कोसते रहते हैं। देखिए यह अंतर है गुमठी, दुकान और शौरूम का। गुमठी में कम कमाई होती है, क्योंकि लागत भी कम लगती है। दुकान में थोड़ा अधिक लागत लगती है तो कमाई भी ज्यादा करनी पड़ती है और शोरूम तो लाखों के पार जाता है तो कमाई भी करोड़ों में करनी होगी न। राजा भैया तो मजबूर थे, बमुश्किल राडिया फाडिया न जाने किस-किस की लॉबिंग से तो नेता बने, फिर यह डर कि न जाने काले चश्मे वाले बाबा कब समर्थन वापस लेने लेने के लिए कहें कि इस्तीफा दे दो, तो जहां मौका मिला, 2जी की तरंगों में लपेट कर रुपैया खीसे में भर लिया। दयानिधि, कलानिधि और वो करुणा की आंख की पुतली अब सभी एक किश्ती में सवार हो गए तो आपको लगा कि लोड ज्यादा हो गया। और हमारे मन्नू लाल..अरे यार मनमोहन सिंह जी बड़े ही समुद्र सदृश्य हृदय वाले हैं वे भी जानते थे कि न जाने इन्हें कब मौका मिले सो उन्होंने भी कह दिया खा ले बेटा खा ले। अब रहे कलमाड़ी जी और शीला आंटी, ये घर वाले लोग हैं। घर का बेटा कमाऊ हो तो किसे बुरा लगता है, क्या आप अपने परिजनों को रोकते हैं कमाने 'खानेÓ से। और आदर्श-वादियों का तो पूछिए ही मत। शहीदों के हक पर डाका डाला तो आपको गुस्सा आ गया, जिंदा जवानों को तड़पाते हैं तब आपको गुस्सा नहीं आता। फिर भी आपने कहा तो कुछ लोगों को जेल में डालने की नौटंकी कर दी। अब आप क्या चाहते हैं क्या फांसी पर ही चढ़ा दें...पहले पापी तो साबित होने दीजिए। अब आप कहेंगे हमें देश की चिंता है, पहली बात जो लग रही है कि आपने सच्ची कही। भैया आप इसीलिए हैं, आप परमार्थ नहीं करेंगे तो अधिकारबोध से भरे नेताजी एक दिन देश को भी जींम जाएंगे। इसलिए आप देश की रक्षा कीजिए, और वोट देने के अधिकार पर रोइए। क्योंकि आपके पास विकल्प नहीं है और उन्होंने गैरत बेच डाली है। पर ध्यान रहे वे अभी सिर्फ आरोपी हैं....।
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