नकली पार्टियां खोखले नेता
मौजूदा राजनीतिक हालात और नेताओं के बयानों को देखकर इसमें संदेह की कतई गुंजाइश शेष नहीं है कि न तो कांग्रेस असली है और न ही भाजपा। असली कांग्रेस काफी समय पहले खत्म हो गई थी और असली भाजपा भी वाजपेयी जी की सक्रियता समाप्त होने के साथ खत्म हो गई। दोनों दलों के नेताओं में न केवल शिष्टता और सहनशीलता की कमी आई है बल्कि घोर अवश्विास ने भी इन्हें घेर लिया है। एक मूंछों पर ताव देता है तो दूसरा घर पर लठैत बुला लेता है। व्यक्तिगत आक्षेप और नीचा दिखाने की प्रवृत्ति दोनों दलों के नेताओं में लगातार बढ़ रही है।
तो पहले ऐसा क्या था? इसे समझने के लिए कुछ तथ्य गौर करने लायक हैं। यह मेरे लिए सुखद अनुभव है कि मुझे भारतीय राजनीति और भारतीय नेताओं के इतने उज्जवल चरित्र को पढऩे का मौका मिला।
हाल ही में एक वाकया सामने आया था जिसमें बताया गया था राजीव गांधी ने अटल बिहार वाजपेयी को उनकी बीमारी का पता लगते ही संयुक्त राष्ट्र जा रहे एक प्रतिनिधि मंडल में शामिल किया था। अटल जी ने राजीव की इस सदासयता का सदा सम्मान किया है। लेकिन परस्पर विश्वास और सम्मान की बहुत बड़ी मिशाल मुझे जानने को मिली है, जिसकी आज के किसी भी नेता से अपेक्षा नहीं की जा सकती। इतिहास का यह पन्ना राजनीतिक शिष्टता और स्वच्छ राजनीति का अनुपम उदाहरण है। यह वक्त कौन सा है, मुझे नहीं पता, इस वक्त को देखने वाले कौन हैं जिन्होंने यह इस दृष्टांत को लोगों तक पहुंचाया, लेकिन है बेहद अनुकरणीय।
आचार्य नरेंद्र देव कांग्रेस छोड़ चुके थे और उन्होंने प्रजा समाजवादी पार्टी बनाई थी। पंडित संपूर्णानंद कांग्रेस में थे और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। जब सवाल आया प्रजा समाजवादी पार्टी का घोषणा पत्र लिखने का। सभी को अंदाजा था कि आचार्य जी इसे स्वयं लिखेंगे। आचार्य जी की तबियत थोड़ी खराब थी। कुछ दिनों बाद आचार्य जी से उनके साथियों ने पूछा कि घोषणा पत्र लिखने का काम कहां तक पहुंचा तो आचार्य जी ने कहा कि उन्होंने संपूर्णानंद से कहा है और वह घोषणा पत्र लिख रहे हैं। आचार्य जी के साथी थोड़े चिंतित हुए, पर किसी ने आचार्य जी के फैसले पर उंगली नहीं उठाई। तीन महीनों के बाद हाथ से लिखा कागजों का बंडल आचार्य जी के पास आया, जिसे पं. संपूर्णानंद ने भेजा था। आचार्य जी ने उसे देखा भी नहीं और सीधे प्रेस में छपने भिजवा दिया। आचार्य जी के साथी चिंतित होकर उनके पास गए और कहा कि कम से कम एक बार देख तो लीजिए कि लिखा क्या है? आचार्य जी ने मुस्कराते हुए कहा कि संपूर्णानंद ने लिखा है, सब सही होगा और वही लिखा होगा, जो मैं लिखता। फिर ध्यान दिला दूं कि आचार्य नरेंद्र देव जी ने प्रजा समाजवादी पार्टी का घोषणा पत्र लिखने का काम उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री संपूर्णानंद जी को सौंपा, जिसे उन्होंने स्वीकार किया और जो उन्होंने लिखा उसे बिना देखे, बिना कामा-फुलस्टाप बदले आचार्य जी ने छपने भेज दिया, जबकि दोनों राजनीतिक तौर पर परस्पर विरोधी दलों में थे।
अगर आज सोनिया गांधी और नितिन गडकरी का उनका कोई साथी या दोस्त किसी दूसरी पार्टी में हो और ऐसा ही आग्रह करे तो नितिन गडकरी और सोनिया गांधी क्या करेंगे? एक और बाकया है। चंद्रभानु गुप्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उनके खिलाफ चंद्रशेखर और उनके साथियों ने लखनऊ में प्रदर्शन किया। नारे लगे, सी वी गुप्ता चोर है, गली-गली में शोर है। यूपी में हैं तीन चोर, मुंशी गुप्ता जुगल किशोर। शाम हुई, लगभग दस हजार प्रदर्शनकारी लखनऊ में थे और किसी के खाने का इंतजाम नहीं था। चंद्रशेखर अपने कुछ साथियों के साथ गुप्ता जी से मिलने गए। गुप्ता जी ने कहा, आओ भूखे-नंगे लोगों, इनको ले तो आए, अब क्या लखनऊ में भूखा रखोगे। चंद्रशेखर जी ने कहा कि आपका राज्य है, जैसा चाहें कीजिए। गुप्ता जी खीज गए, लेकिन कहा कि मैंने कह दिया है पूड़ी-सब्जी पहुंचती होगी। मैंने पहले ही समझ लिया था कि बुला तो लोगे, लेकिन खाने का इंतजाम नहीं कर पाओगे।
दूसरी ओर हमने पिछले दिनों देखा, बाबा रामदेव को उनके समर्थकों सहित एक स्टेडियम में रखा गया, वहां पीने के लिए पानी तक नहीं था।
तो पहले ऐसा क्या था? इसे समझने के लिए कुछ तथ्य गौर करने लायक हैं। यह मेरे लिए सुखद अनुभव है कि मुझे भारतीय राजनीति और भारतीय नेताओं के इतने उज्जवल चरित्र को पढऩे का मौका मिला।
हाल ही में एक वाकया सामने आया था जिसमें बताया गया था राजीव गांधी ने अटल बिहार वाजपेयी को उनकी बीमारी का पता लगते ही संयुक्त राष्ट्र जा रहे एक प्रतिनिधि मंडल में शामिल किया था। अटल जी ने राजीव की इस सदासयता का सदा सम्मान किया है। लेकिन परस्पर विश्वास और सम्मान की बहुत बड़ी मिशाल मुझे जानने को मिली है, जिसकी आज के किसी भी नेता से अपेक्षा नहीं की जा सकती। इतिहास का यह पन्ना राजनीतिक शिष्टता और स्वच्छ राजनीति का अनुपम उदाहरण है। यह वक्त कौन सा है, मुझे नहीं पता, इस वक्त को देखने वाले कौन हैं जिन्होंने यह इस दृष्टांत को लोगों तक पहुंचाया, लेकिन है बेहद अनुकरणीय।
आचार्य नरेंद्र देव कांग्रेस छोड़ चुके थे और उन्होंने प्रजा समाजवादी पार्टी बनाई थी। पंडित संपूर्णानंद कांग्रेस में थे और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। जब सवाल आया प्रजा समाजवादी पार्टी का घोषणा पत्र लिखने का। सभी को अंदाजा था कि आचार्य जी इसे स्वयं लिखेंगे। आचार्य जी की तबियत थोड़ी खराब थी। कुछ दिनों बाद आचार्य जी से उनके साथियों ने पूछा कि घोषणा पत्र लिखने का काम कहां तक पहुंचा तो आचार्य जी ने कहा कि उन्होंने संपूर्णानंद से कहा है और वह घोषणा पत्र लिख रहे हैं। आचार्य जी के साथी थोड़े चिंतित हुए, पर किसी ने आचार्य जी के फैसले पर उंगली नहीं उठाई। तीन महीनों के बाद हाथ से लिखा कागजों का बंडल आचार्य जी के पास आया, जिसे पं. संपूर्णानंद ने भेजा था। आचार्य जी ने उसे देखा भी नहीं और सीधे प्रेस में छपने भिजवा दिया। आचार्य जी के साथी चिंतित होकर उनके पास गए और कहा कि कम से कम एक बार देख तो लीजिए कि लिखा क्या है? आचार्य जी ने मुस्कराते हुए कहा कि संपूर्णानंद ने लिखा है, सब सही होगा और वही लिखा होगा, जो मैं लिखता। फिर ध्यान दिला दूं कि आचार्य नरेंद्र देव जी ने प्रजा समाजवादी पार्टी का घोषणा पत्र लिखने का काम उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री संपूर्णानंद जी को सौंपा, जिसे उन्होंने स्वीकार किया और जो उन्होंने लिखा उसे बिना देखे, बिना कामा-फुलस्टाप बदले आचार्य जी ने छपने भेज दिया, जबकि दोनों राजनीतिक तौर पर परस्पर विरोधी दलों में थे।
अगर आज सोनिया गांधी और नितिन गडकरी का उनका कोई साथी या दोस्त किसी दूसरी पार्टी में हो और ऐसा ही आग्रह करे तो नितिन गडकरी और सोनिया गांधी क्या करेंगे? एक और बाकया है। चंद्रभानु गुप्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उनके खिलाफ चंद्रशेखर और उनके साथियों ने लखनऊ में प्रदर्शन किया। नारे लगे, सी वी गुप्ता चोर है, गली-गली में शोर है। यूपी में हैं तीन चोर, मुंशी गुप्ता जुगल किशोर। शाम हुई, लगभग दस हजार प्रदर्शनकारी लखनऊ में थे और किसी के खाने का इंतजाम नहीं था। चंद्रशेखर अपने कुछ साथियों के साथ गुप्ता जी से मिलने गए। गुप्ता जी ने कहा, आओ भूखे-नंगे लोगों, इनको ले तो आए, अब क्या लखनऊ में भूखा रखोगे। चंद्रशेखर जी ने कहा कि आपका राज्य है, जैसा चाहें कीजिए। गुप्ता जी खीज गए, लेकिन कहा कि मैंने कह दिया है पूड़ी-सब्जी पहुंचती होगी। मैंने पहले ही समझ लिया था कि बुला तो लोगे, लेकिन खाने का इंतजाम नहीं कर पाओगे।
दूसरी ओर हमने पिछले दिनों देखा, बाबा रामदेव को उनके समर्थकों सहित एक स्टेडियम में रखा गया, वहां पीने के लिए पानी तक नहीं था।