Wednesday, November 30, 2011

क्या बेशर्मी है

क्या बेशर्मी है, पहले वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी एफडीआई को जटिल बता रहे थे और आज सबसे के लिए फायदेमंद बता रहे हैं। पहले भाजपा एफडीआई के पक्ष में थी आज विरोध में देश सिर पर उठा रखा है। धन्य हो हिन्दुस्तान के सियासतखोरो धन्य हो...और जनता के लिए कुछ कहना बेमानी है...लोकतंत्र है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है...और हमारा अधिकांश सच दूसरे लोग तय करते हैं...जैसे फिलहाल कालेधन पर बाबा रामदेव औा आडवाणीजी तय कर रहे हैं...भ्रष्टाचार का सच अन्ना हजारे और उनकी टीम तय कर रही है...रिटेल में विदेशी निवेश सरकार और विपक्ष तय कर रही है...इसमें हमारा रोल केवल जिंदाबाद और मुर्दाबाद तक ही सीमति है, और नारे लगवाने वाला बड़े गर्व से कहता है, यह देश की आवाज है। कोई नहीं पूछना चाहता कि आखिर सच क्या है, कोई बताना भी नहीं चाहता कि आखिर सच क्या है क्योंकि सबके हित खादी से जुड़े हैं, और जिनके हित खादी से नहीं जुड़े हैं, जिन्हें नेता बनने का शौक नहीं है, जनता उन्हें बेवकूफ समझती है।